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सुनीता का प्यार

सुनीता:-

सुनीता अपने दोनों बेटों के साथ रहती थी।सुनीता का पति महेश बहुत अच्छा इंसान था, जो हम सुनीता जो सुनीता की सारी बातें मानता था। सुनीता के सास ससुर थोड़े अलग सोच के थे। उनको अपनी बहू सिर्फ घर में ही दीखनी चाहिए थी, लेकिन सुनीता को विदेश में रहना था जिस कारण वह अपने पति से रोज झगड़ती थी।

सुनीता कहती थी कि मेरी भी कोई जिंदगी है तुम्हारे माता-पिता मुझे क्या समझते हैं। मैं सारा दिन सिर्फ काम ही करती रहूंगी क्या? महेश सुनीता के सामने ज्यादा कुछ बोलना नहीं था क्योंकि सुनीता का स्वभाव थोड़ा कड़क था। उसे गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था। सुनीता से ज्यादा महेश ही अपने दोनों बेटों पर ध्यान देता था, सुनीता तो सोचती थी की शादी करके उसकी जिंदगी ही खराब हो गई है।

दोनों बच्चे बेचारे अभी तो स्कूल में ही पढ़ रहे थे। अभी तो उनकी दसवीं भी पूरी नहीं हुई थी दोनों बच्चे अपनी मां के प्यार के लिए तरसते थे। सुनीता का जब मन करता उनसे अच्छे से बात करती नहीं तो वह सारा दिन अपने दादा दादी के पास ही रहते। सुनीता को बुरा भी लगता था लेकिन फिर उसके मन में यही ख्याल आता कि अगर आज यह सब ना होते तो मेरी जिंदगी कुछ और ही होती।

उतने में अंदर से आवाज आती है सुनीता जरा दो कप चाय बनाना मोहल्ले वाली सविता आंटी आई है। गुस्से ही गुस्से में सुनीता चाय बनाने चली जाती है। चाय देने के बाद सुनीता भी उनके पास ही बैठ जाती है तो आंटी जी पूछती है कि बेटा और क्या करती हो तुम अपना भी कोई काम काज करती हो या फिर सारा दिन बस सास ससुर और बच्चों में ही लगी रहती हो।

आंटी जी भी थोड़ी चिंगारी लगाकर चली जाती है। सुनीता से कहती है कि मेरे बेटे बहु तो अमेरिका में रहते हैं और अच्छा खासा बिजनेस चल रहा है। वह तो कभी-कभी ही हमसे मिलने आते हैं, सुनीता उनकी बातें सुनकर मन ही मन मचल रही थी कि मैं भी आज ही महेश से कहूंगी कि मुझे भी अमेरिका जाना है। रात को महेश जब ऑफिस से घर लौटता है तो वह महेश से प्यार से बात करती है। ऐसे प्यार से बात तो उसने कभी महेश से करी ही नहीं थी।

महेश खाना खा रहा होता है और उसी वक्त सुनीता उसको कहती है कि हम भी अमेरिका चल रहे हैं। महेश के हाथ का निवाला प्लेट में ही रह जाता है। महेश कहता है तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है। अमेरिका जाकर रहने के लिए कितने पैसे चाहिए होते हैं पता भी है कुछ?

सुनीता कौनसी महेश की बात सुनने वाली थी। उसने तो महेश को सीधी धमकी दे दी थी कि या तो अमेरिका चलो या फिर मैं इस घर में नहीं रहूंगी। मुझे तलाक दे दो। महेश बेचारा क्या ही करता अब उसकी भी मजबूरी बन गई अमेरिका जाने की। सुनीता के आगे तो उसके सास ससुर भी कुछ नहीं बोले, क्योंकि रात में ही महेश ने अपने माता-पिता से बात कर ली थी और उनसे कहा था कि आप उससे कुछ मत कहना थोड़े दिनों में वह खुद ही वहां से परेशान होकर मुझे वापस आने के लिए बोल देगी।

सास ससुर भी कुछ नहीं कहते है। महेश बैंक से लोन लेकर अमेरिका जाता है क्योंकि उनके पास इतना भी पैसा नहीं था कि वह अमेरिका जैसे महंगे देश में रह सके। सुनीता पर तो भूत सवार था अमेरिका जाने का उसे तो बच्चे, सास ससुर कोई नहीं दिख रहा था। सुनीता तो अपने दोनों बच्चों को सास ससुर के पास छोड़कर चली गई थी। मां की ममता अमेरिका जाने के चक्कर में छुप गई थी।
उसके बच्चों को इतना फर्क नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह तो बचपन से ज्यादातर अपने दादा-दादी के पास रहे थे।

महेश और सुनीता अमेरिका चले गए थे। वहां जाकर सुनीता तो बहुत खुश थी लेकिन महेश के मन में टेंशन ही थी। महेश अमेरिका तो आ गया था लेकिन उसका दिल अभी भी इंडिया में ही था। उसे अपने बच्चों की माता-पिता की चिंता सता रही थी।

वहां जाकर अब उन्हें काम भी देखना था, लोन के पैसों से वह कब तक गुजारा कर सकते थे। महेश को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और दूसरी तरफ सुनीता को चिंता ही नहीं थी। वह तो वहां जाने के बाद रोज फोटो खींचना और सोशल मीडिया पर डालने में ही लगी रहती थी।

महेश को कम नहीं मिल रहा था इंडिया की तरह वहां हर किसी को कहीं भी काम पर नहीं रखते थे। सिर्फ वेल एजुकेटेड और स्किल्ड लोगों को ही काम पर रखते थे।
दोनों को अमेरिका में 2 महीने हो चुके थे। धीरे-धीरे लोन के पैसे भी खत्म हो रहे थे, जब महेश सुनीता से कम खर्च करने को कहता तो वह उल्टा उसी पर ही चिल्लाती थी। बेचारे महेश की तो टेंशन ही खत्म नहीं हो रही थी।

जब सुनीता अमेरिका में अपने मोहल्ले वाली आंटी के बेटे बहु से मिलती है तो उनसे पता चलता है कि अमेरिका आने के बाद उनकी बहुत बुरी हालत हो गई है। वह बताते हैं कि हमने तो घर पर झूठ बोला है कि हमारा बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा है। हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं था अगर सच बताते तो मोहल्ले के लोग हमारा मजाक उड़ाते।

उनकी बातें सुनकर सुनीता की भी आंखें खुल गई कि हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ तो हम क्या करेंगे। सुनीता महेश से पूछती है कि तुम्हें अभी कोई काम नहीं मिला, ऐसे हम यहां कैसे रहेंगे। महेश की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह कहता है कि वह पैसे थे वह भी खत्म हो गए हैं।

मैंने यहां आने के लिए लोन लिया था अब मैं वह भी कैसे चुकाऊंगा। सुनीता को एहसास हुआ कि उसने बहुत गलत किया है, अपने पति को भी नहीं समझ पाई। सबसे ज्यादा उसे पछतावा होता है कि अपने बच्चों को छोड़कर अमेरिका आ गई। उनके बारे में एक बार सोचा भी नहीं, सुनीता महेश से कहती है कि हम अभी इंडिया वापस चलेंगे महेश बहुत खुश होता है।
उसकी आंखों में खुशी अलग ही छलक रही थी। सुनीता को बहुत पछतावा हो रहा था। दोनों वापस इंडिया चले आते हैं। सुनीता अब पहले की तरह नहीं करती थी वह अपने गृहस्ती जीवन पर ध्यान दे रही थी।

सुनीता इंडिया जाकर सबसे पहले अपने बच्चों को गले लगाती है और उनसे माफी मांगती है कि उन्हें जब माँ के प्यार की जरूरत थी उनकी मां उनसे अलग थी। कभी उन पर इतना ध्यान ही नहीं दिया। अपने मजे के लिए वह अपने बच्चों को ही नजर अंदाज कर रही थी।


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